Not known Facts About hanuman chalisa
Not known Facts About hanuman chalisa
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Amongst Hindus throughout the world, It's really a very popular belief that chanting the Chalisa invokes Hanuman's divine intervention in grave challenges.
It may be mentioned devoid of reservation that Tulsidas is the best poet to write inside the Hindi language. Tulsidas was a Brahmin by start and was considered to be a reincarnation in the writer of your Sanskrit Ramayana, Valmiki.
सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥ तुह्मरे भजन राम को पावै ।
भावार्थ – हे महाप्रभु हनुमान जी! संसार के जितने भी कठिन कार्य हैं वे सब आपकी कृपामात्र से सरल हो जाते हैं।
व्याख्या – सामान्यतः जब किसी से कोई कार्य सिद्ध करना हो तो उसके सुपरिचित, इष्ट अथवा पूज्य का नाम लेकर उससे मिलने पर कार्य की सिद्धि होने में देर नहीं लगती। अतः यहाँ श्री हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिये भगवान श्री राम, माता अंजनी तथा पिता पवनदेव का नाम लिया गया।
लङ्केस्वर भए सब जग जाना ॥१७॥ जुग सहस्र जोजन पर भानु ।
sugamaSugamaEasy anugrahaAnugrahaGrace tumhareTumhareYour teteTeteThat That means: Each tricky activity on the globe gets straightforward by your grace.
भावार्थ – आपकी शरण में आये हुए भक्त को सभी सुख प्राप्त हो जाते हैं। आप जिस के रक्षक हैं उसे किसी भी व्यक्ति या वस्तु का भय नहीं रहता है।
kānanaKānanaEars KundalaKundalaEar kunchitaKunchitaCurly / long KeshaKeshaHair Meaning: You've golden coloured overall body shining with fantastic-wanting attire. You've wonderful ear-rings with very long curly hair.
भावार्थ – आपकी इस महिमा को जान लेने के बाद कोई भी प्राणी किसी अन्य देवता को हृदय more info में धारण न करते हुए भी आपकी सेवा से ही जीवन का सभी सुख प्राप्त कर लेता है।
भावार्थ – भगवान् श्री राघवेन्द्र ने आपकी बड़ी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि तुम भाई भरत के समान ही मेरे प्रिय हो ।
सत्संग के द्वारा ही ज्ञान, विवेक एवं शान्ति की प्राप्ति होती है। यहाँ श्री हनुमान जी सत्संग के प्रतीक हैं। अतः श्री हनुमान जी की आराधना से सब कुछ प्राप्त हो सकता है।
भावार्थ– आप भगवान् शंकर के अंश (अवतार) और केशरी पुत्र के नाम से विख्यात हैं। आप (अतिशय) तेजस्वी, महान् प्रतापी और समस्त जगत्के वन्दनीय हैं।
भावार्थ – आप अपने स्वामी श्री रामचन्द्र जी की मुद्रिका [अँगूठी] को मुख में रखकर [सौ योजन विस्तृत] महासमुद्र को लाँघ गये थे। [आपकी अपार महिमा को देखते हुए] इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है।